
रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन का इस हफ़्ते ईरान यात्रा में गर्मजोशी के साथ स्वागत हुआ था।
ईरान के पूर्व विदेश मंत्री अली अकबर विलायती ने पुतिन की इस यात्रा को 'ईरान के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण और बेहतरीन' यात्रा बताया था।
पुतिन ने अयातुल्लाह अली ख़ामनेई को भरोसा दिलाया था, "दूसरों की तरह हम कभी अपने सहयोगियों की पीठ में छुरा नहीं घोंपते।"
ईरानी मीडिया में पुतिन के इस बयान को काफ़ी ज़ोर-शोर से प्रस्तुत किया गया था।
साफ़ है कि रूस को सीरिया मुद्दे पर अपने साथ करना ईरानी विदेश नीति की बड़ी सफलता है।
ज़मीनी स्तर पर ईरान, हिज़्बुल्लाह और सीरियाई फ़ौज को सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद को समर्थन देना मुश्किल होता जा रहा था।
इसलिए भी रूस का यह क़दम ईरान के लिए बड़ी राहत की बात है।
मगर रूस और ईरान के बीच इस दोस्ती को लेकर सभी ईरानी ख़ुश नहीं। कई लोगों ने पुतिन की इस यात्रा के बारे में सोशल मीडिया पर अपनी राय ज़ाहिर की है।
इन्होंने देशवासियों को रूस और ईरान के बीच सहयोग की कुछ नाकामयाब चीज़ों की याद दिलाई है।
कई ईरानी मानते हैं कि रूस एक ख़तरनाक और जिसका अंदाज़ा नहीं लगाया जा सकता, वैसा दुश्मन है।
1828 की तुर्कमेंचेइ की संधि (ट्रीटी ऑफ़ तुर्कमेंचेइ) के तहत रूस और फ़ारस (मौजूदा ईरान) के बीच सीमा निर्धारण हुआ था और फ़ारस को ज़मीन का एक बड़ा पट्टा रूस को देने पर मजबूर किया गया था।
इसे आज भी ईरान में एक अन्यायपूर्ण क़रार माना जाता है।
कई लोगों ने इतिहास की रोशनी में रूस और ईरान की इस सुविधाजनक नई दोस्ती के लंबे वक़्त तक चलने पर शंका जताई है।
मगर यह स्पष्ट है कि रूसी और ईरानी नेता सीरिया और उस पूरे इलाक़े में अपना प्रभाव जमाने के मौक़े के रूप में इस नए गठजोड़ को देख रहे हैं।
यह गठजोड़ ऐसे समय में हो रहा है जब सऊदी अरब और ईरान के बीच रिश्ते सुधरते नज़र नहीं आ रहे हैं।
कई ईरानी सऊदी अरब को 'एक दुश्मन' की तरह देख रहे हैं, जो इस्लामिक स्टेट का समर्थन करता है और इसलिए ईरान के लिए सीधे तौर पर ख़तरा है।
आने वाले महीनों में रूस और ईरान के बीच कई संभावित मुश्किलें आ सकती हैं।
एक मुद्दा सीरियाई राष्ट्रपति बशर अल-असद के भविष्य से जुड़ा हो सकता है।
ईरान ने साफ़ कर दिया कि राष्ट्रपति असद अपनी कुर्सी पर क़ायम रहेंगे और उनके भविष्य को लेकर कोई समझौता नहीं होगा।
इस हफ़्ते तेहरान में पुतिन और अयातुल्लाह खुमैनी ने बशर अल-असद का एक बार फिर समर्थन तो किया है लेकिन रूस ने दूसरी जगहों पर कुछ हद तक इस मामले में पैंतरेबाज़ी के भी संकेत दिए हैं।
ईरान दौरे पर राष्ट्रपति पुतिन ने तेल और गैस से लेकर निर्माण कार्य तक, ऊर्जा उत्पादन और रेलवे में सहयोग और निवेश की बड़ी योजनाओं का वादा किया।
उम्मीदें बड़ी हैं लेकिन दोनों देश आर्थिक तंगी का सामना कर रहे हैं इसलिए ऐसे हालात में ये वायदे कितना हक़ीक़त में बदलते हैं, यह देखने वाली बात होगी।
दूसरी ओर रूसी विशेषज्ञ पहले से चेतावनी दे चुके हैं कि ईरान के साथ हिज़्बुल्लाह और सीरियाई सत्ता की नज़दीकी रूस को कहीं सुन्नीबहुल देशों से दूर न कर दे और वह मध्य पूर्व में अपना प्रभाव न खो दे।
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