
सूत्रों के मुताबिक, आतंक का सरगना मासूम रुकय्या हसन मोहम्मद से डरा हुआ है। इतना डरा हुआ है कि इसकी मौत के बावजूद वो इसे जिंदा कहने को मजबूर है। सिटीजन जर्नलिस्ट रुकय्या सोशल मीडिया के जरिए आतंकियों का विरोध करती रही। जुलाई 2015 में बगदादी ने रक्का शहर में वाईफाई और इंटरनेट के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी। पाबंदी के इस ऐलान के बाद रुकय्या ने अपने फेसबुक पर लिखा था कि तुम इंटरनेट सेवा खत्म कर दो। हमारा पैगाम ले जाने वाले कबूतर कभी शिकायत नहीं करेंगे। रुकय्या हसन मोहम्मद के इस कमेंट से समझना मुश्किल नहीं है कि वो आतंकियों को उनके गढ़ में रहकर खुलेआम चुनौती दे रही थी। उसकी इस चुनौती से बगदादी के गुर्गे बौखला गए और उन्होंने उसे मौत के घाट उतार दिया। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब इन दरिंदों को अपना जुर्म छुपाना पड़ गया।
दहशतगर्दों ने रुकय्या को इतनी खामोशी से मौत के घाट उतारा कि उसके बेहद करीबी लोगों को भी भनक नहीं लग पाई। यही नहीं उसके बाद उसके जिंदा होने का ढोंग भी रचते रहे। उन्हें लगता था कि अगर उसे सरेआम मौत की सजा दी गई तो शहर में बगावत फैल सकती है। इसलिए दहशतगर्दों ने बहुत ही खामोशी से उसका कत्ल कर दिया। उसके बाद दुनिया के सामने ये साबित करने के लिए कि रुकय्या जिंदा है। उसके फेसबुक अकाउंट को हैक करके ऑपरेट करते रहे। बगदादी के गुर्गों के लिए निसान इब्राहीम यानि रुकय्या के बागी तेवर चेलेंज बने हुए थे।
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