
अल्बानिया के छोटे से गांव में रहने वालीं शकुर्ता हसनपापजा जब 16 साल की थीं तो उन्हें शादी में धकेला जाने लगा।

उनके सामने उस जबरदस्ती की शादी से बचने का एक ही रास्ता था। एक प्राचीन परंपरा, जिसके तहत लड़कियां ताउम्र सेक्स ना करने की कसम खा लेती हैं। शकुर्ता ने कसम उठा ली और ताउम्र कुंवारी रहने का फैसला कर लिया और एक ही झटके में उसकी जिंदगी तितर-बितर हो गई, उन्होंने सेक्स को त्याग दिया, शादीशुदा जिंदगी से मुंह मोड़ लिया और कभी मां ना बन सकने का भविष्य चुन लिया। लेकिन बदले में उन्हों जो मिला वह भी कम नहीं था, उन्हें पुरुष प्रधान समाज में एक पुरुष की तरह जीने का मौका मिला। अब वह परिवार की मुखिया थीं। उनका नाम भी बदल गया था, अब उन्हें एक मर्दाना नाम मिल गया था, शकुर्तन। आज जब वह 70 की उम्र पार कर चुकी हैं, शकुर्तन ही कहलाना पसंद करती हैं। वह बताती हैं, "मैंने पुरुष हो जाने को चुना, जो मुझे पसंद करते हैं, मुझे शकुर्तन कहते हैं, जो लोग मुझे सताना चाहते हैं वे शकुर्ता कहते हैं"।

उनके सामने उस जबरदस्ती की शादी से बचने का एक ही रास्ता था। एक प्राचीन परंपरा, जिसके तहत लड़कियां ताउम्र सेक्स ना करने की कसम खा लेती हैं। शकुर्ता ने कसम उठा ली और ताउम्र कुंवारी रहने का फैसला कर लिया और एक ही झटके में उसकी जिंदगी तितर-बितर हो गई, उन्होंने सेक्स को त्याग दिया, शादीशुदा जिंदगी से मुंह मोड़ लिया और कभी मां ना बन सकने का भविष्य चुन लिया। लेकिन बदले में उन्हों जो मिला वह भी कम नहीं था, उन्हें पुरुष प्रधान समाज में एक पुरुष की तरह जीने का मौका मिला। अब वह परिवार की मुखिया थीं। उनका नाम भी बदल गया था, अब उन्हें एक मर्दाना नाम मिल गया था, शकुर्तन। आज जब वह 70 की उम्र पार कर चुकी हैं, शकुर्तन ही कहलाना पसंद करती हैं। वह बताती हैं, "मैंने पुरुष हो जाने को चुना, जो मुझे पसंद करते हैं, मुझे शकुर्तन कहते हैं, जो लोग मुझे सताना चाहते हैं वे शकुर्ता कहते हैं"।
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